
जयपुर। राष्ट्रीय विधिेक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश यू यू ललित ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी व बच्चों के प्रति हिंसा पर चिंता जताते हुए कहा कि डिजिटल डिवाइस व इंटरनेट के उपयोग ने इस खतरे को और बढ़ा दिया है। उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इंटरनेट पर कुछ भी अपलोड़ करने की छूट को लेकर कहा कि कंटेंट अपलोड करने वाले व्यक्ति की पहचान की बाध्यता होनी चाहिए। उधर, सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश अजय रस्तोगी ने पॉक्सो अदालतों के न्यायाधीशों के जल्दी—जल्दी तबादला होने पर सवाल उठाया है।
न्यायाधीश ललित व न्यायाधीश रस्तोगी ने शनिवार को यहां बच्चों के खिलाफ हिंसा के प्रति बाल संरक्षण प्रणाली विषय पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (रालसा) व यूनिसेफ की ओर से संगोष्ठी में यह बात कही। इससे पहले जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जयपुर महानगर प्रथम, जयपुर महानगर द्वितीय एवं जयपुर जिला हेतु नवनिर्मित एडीआर भवन का लोकार्पण किया गया। संगोष्ठी में न्यायाधीश ललित ने कहा कि ऐसा सिस्टम होना चाहिए जिससे ऐसे वीडियो अपलोड होने के साथ ही सार्वजनिक होने से रोके जा सकें। इससे निजता को सार्वजनिक होने से रोका जा सकेगा। उन्होंने पॉक्सो मामलों में जमानत के लिए कड़ी शर्ते जोड़ने, बच्चों से जुड़ी हेल्पलाइन्स को प्रचारित करने, हर राज्य में गवाह सुरक्षा केन्द्र और बच्चों को गलत के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया। सुनवाई के दौरान बच्चें को उपयुक्त माहौल देकर तुरन्त बयान दर्ज कराने और उसकी शिक्षा, मेडिकल व मानसिक स्थिति पर ध्यान देने की बात भी कही।
पॉक्सो कोर्ट जज की ट्रेनिंग पर रहे जोर
सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश अजय रास्तोगी ने पॉक्सो अदालत के जज का जल्दी तबादला नहीं करने की पैरवी करते हुए कहा कि इन जजों की ट्रेनिंग पर भी जोर दिया जाए और तबादला तो इनका 6—7 साल से पहले होना ही नहीं चाहिए।
स्कूल में हो विशेष इंतजाम
राजस्थान हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत माहांती ने कहा कि सभी स्कूलों में कानूनी जागरुकता के लिए क्लब बनाना जाए और फ्रंट आॅफिस में बच्चों को शिकायत करने की आसान व्यवस्था की जाए। कार्यक्रम में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायाधीश संगीत लोढ़ा ने भी विचार रखे।
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