राजस्थानी लोक गीत और संगीत मेरी आत्मा है, इसमें मेरे प्राण बसते हैं: सीमा मिश्रा

30 मार्च राजस्थान दिवस के अवसर पर राजस्थानी लोक गायिका 
मरु कोकिला सीमा मिश्रा के विराट व्यक्तित्व पर विशेष कवरेज

गौरवशाली विराट लोक संस्कृति, साहित्य के साथ-साथ महाराणा प्रताप,पन्नाधाय, हाड़ी रानी, पद्मावती के शौर्य, प्रेम और बलिदान के ऐश्वर्यशाली स्वर्णिम इतिहास को उकेरती धोरा रीं धरती राजस्थान की माटी की सोंधी महक है सीमा मिश्रा के स्वर में ।मीराबाई के मिश्री से मीठे भावपूर्ण भजन,यहां के लोकगीतों को अपनी सुमधुर आवाज देकर उन्हें सदा सदा के लिए अमर करने वाली सरल,सहज,सौम्य स्वभाव, विनम्र व्यक्तित्व की धनी राजस्थानी लोकगीतों का गौरव है मरू कोकिला सीमा मिश्रा।  


राजस्थानी लोकगीतों के संरक्षण, संवर्धन एवं सृजन में इनके अतुलनीय योगदान को आज राजस्थान स्थापना दिवस के अवसर पर नहीं भुलाया जा सकता। आज 30 मार्च को राजस्थान 76 साल का होने जा रहा है, राजपूत राजाओं से रक्षित इस भूमि को 30 मार्च 1949 को राज- स्थान नाम मिला था जिस तरह से राजस्थान प्रदेश की पहचान यहां की लोक संस्कृति, धरोहरों और ऐतिहासिक स्मारकों की वजह से देश दुनिया में है। ठीक वैसे ही राजस्थानी लोकगीतों को पूरे विश्व में गरिमापूर्ण स्थान देने में राजस्थान की बेटी स्वर कोकिला सीमा मिश्रा का अतुल्यनीय योगदान है। बस आज इस विशेष दिवस पर जरूरत है इस विराट व्यक्तित्व के अनुकरणीय योगदान को स्मरण करते हुए सम्मान देने की,ताकि आगे आने वाली पीढ़ी राजस्थान के लोकगीत- संगीत की गरिमा को बचाए रखते हुए इसे बढ़ाने के लिए सीमा मिश्रा के योगदान को युगों-युगों तक याद रखें।

राजस्थान की लता 

राजस्थानी लोकगीत, संगीत के संरक्षण,संवर्धन और सृजन के लिए सदैव कार्य करने वाली, नवोदित कलाकारों को संबलता प्रदान करते हुए प्रोत्साहन और मार्गदर्शन देने वाली, राजस्थान की कला और कलाकारों के उत्थान के लिए सीमा मिश्रा राजस्थान लोक संगीत- कला अकादमी (एनजीओ) की संस्थापक राजस्थान की एकमात्र सबसे अधिक आदरणीय और लोकप्रिय गायिका मरू कोकिला सीमा मिश्रा हैं। 

प्रतिभाओं को तराशने की जरूरत

राजस्थान की लता के रूप में विख्यात सीमा मिश्रा ने जवाहर कला केंद्र जयपुर में राजस्थान स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर पर्यटन कला एवं संस्कृति विभाग राजस्थान सरकार और राजस्थानी सिनेमा विकास संघ द्वारा आयोजित राजस्थानी सिनेमा और लोक संगीत महोत्सव 2025 में ‘पद्मश्री अल्लाह जिलाई बाई स्मृति उत्कृष्ट लोक गायन सम्मान’ को प्राप्त करने के बाद हमारे वरिष्ठ संवाददाता से एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि लोकगीतों का रीमिक्स और फ्यूजन ठीक नहीं है। यह संगीत की आत्मा के साथ खिलवाड़ जैसा है। संगीत के साथ छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए। राजस्थानी लोक गीत और संगीत मेरी आत्मा है। इसमें मेरे प्राण में बसते हैं। मेरी एक ही कोशिश है राजस्थान सहित पूरे भारत में हजारों सीमा मिश्रा है बस उन्हें अवसर देने की जरूरत है और उन्हें सामने लाकर उनकी प्रतिभा को सम्मानित करने की आवश्यकता है। इसी उद्देश्य से मैंने एक संगठन की स्थापना की है। पैसा हर किसी को अच्छा लगता है और हर कोई कमाना चाहता है परंतु मैंने पैसे के लिए अपनी आत्मा को कभी नहीं बेचा और ना बेचूंगी मुझे बड़ी-बड़ी कंपनियों से करोड़ रुपए के ऑफर आए, बड़े-बड़े प्रलोभन दिए गए। मुझे कहा गया आप अपने गीतों का,राजस्थानी लोकगीतों का रीमिक्स और फ्यूजन हमारे लिए गाएं मैंने साफ-साफ मना कर दिया।

लोक गायिकी को दिए नए आयाम

आज सीमा मिश्रा के गाएं हुए सैकड़ो गीतों को गाकर हजारों कलाकार अपनी जीविका चला रहें हैं। सीमा मिश्रा का लगभग ढाई दशकों से भी अधिक का कार्यकाल राजस्थानी लोक गायन कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियों के साथ सृजन से भरा पड़ा है इन्होंने अब तक ढाई हजार से भी अधिक लोकगीत, गीत, भजन, गजल गाएं हैं।  सीमा मिश्रा की जादुई आवाज के भारत सहित पूरी दुनिया में निवास कर रहे करोड़ों राजस्थानी दीवाने हैं।  राजस्थानी लोक गायन की अपरिहार्य और एक छत्र साम्राज्ञी स्वीकार किया है। 

प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा जा चुका हैभारत सहित पूरी दुनिया में राजस्थान सरकार, भारत सरकार सहित अनेक प्रतिष्ठित,सम्मानित संस्थाओं द्वारा हजारों लब्ध प्रतिष्ठित सम्मानों से इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। जिनमें प्रमुख रूप से मरु कोकिला सम्मान,राजस्थान की लता अलंकरण उपाधि,स्वर कोकिला अलंकरण,क्वीन ऑफ़ मेलोडी उपाधि,राजस्थान रत्न सम्मान,राष्ट्र शक्ति शिरोमणि सम्मान, द सोल ऑफ़ राजस्थान अवार्ड,स्वर कोकिला लता मंगेशकर सम्मान, स्वर कलानिधि सम्मान है। इनके सैकड़ो गीत  सुपर डुपर हिट है। इन्होंने कभी भी किसी की नकल नहीं की इनके सधें हुए स्वर,गीत के एक-एक शब्द के छिपे भाव को सलीके से जीवंत करते हैं। मरु कोकिला सीमा मिश्रा को राजस्थानी लोक गायन एवं सुगम गायन की सहज मौलिक अभिव्यक्ति कहां जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। केंद्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं के लोकगीत पाठ्यक्रम में भी सीमा मिश्रा को ‘राजस्थान की लता मंगेशकर’ कहकर पढ़ाया जाने लगा है।   परंतु इन सबसे ऊपर संगीत के एक बहुत बड़े क्षेत्र में एक बड़े नाम का पर्याय बन जाना अपने आप में एक बहुत बड़ा अवार्ड है... भारत देश की स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का पर्याय राजस्थान में सीमा मिश्रा को कहा जाता है,दरअसल ‘राजस्थान की लता मंगेशकर’ सीमा मिश्रा को ही कहा जाता है यह एक तरह का अपने आप में बहुत बड़ा सम्मान है,अवार्ड है पुरस्कार है। और इस अलंकरण के आगे सभी पुरस्कार गौण है।

राजस्थान की लता ‘सीमा मिश्रा’  ने लोक संगीत को विश्वस्तर तक पहुंचाया 

लोकगीतों का रीमिक्स और फ्यूजन ठीक नहीं है, यह संगीत की आत्मा के साथ खिलवाड़ जैसा है : मरु कोकिला सीमा मिश्रा

राजस्थान में सीमा मिश्रा का नाम जुबान पर आते ही कानों में एक मीठी सी स्वरलहरी गूंज उठती है,और मानस पटल पर जीवंत हो उठता है मरूभूमि का गाता गुनगुनाता अल्हड़ स्वरूप, राजस्थानी गीतों और भजनों का पर्याय बन चुकी सीमा मिश्रा की गायकी की सबसे बड़ी ख़ासियत है उनका सुरीलापन। गाना चाहे वाद्य यंत्रो की मधुर झंकार के साथ हो या बिना वाद्य यंत्रो के, सीमा जी के कंठ से निकले स्वर कभी विचलित नहीं होते,अब तो यह स्थिति है कि राजस्थानी लोकगायन मानो सीमा मिश्रा जी की आवाज के बिना अधूरा सा लगने लग जाता है।

सीमा मिश्रा जी के गले में माटी का स्पंदन है जिसका उन्होने गायन के द्वारा विस्तार करके इस लोकसंगीत को विश्वस्तर तक पहूँचाया है वर्ना पहले यहा के लोकसंगीत संरक्षक जातियां जिनमें मांगणियार, ढोली, दमामी, ढाडी आदि आते है के द्वारा सीमित स्थान विशेष एवं सीमित उनके जीवन काल तक ही सुना जाता था पर इन सभी लगभग ढाई हजार गीतो को अब सीमा मिश्रा की आवाज में रिकोर्डेड कैसेट के माध्यम से सुना जा सकता है ....सीमा मिश्रा ने विरह गीत,होली गीत,विवाह गीत के माध्यम से राजस्थान के पूर्व से पश्चिम एवं उतर से दक्षिण तक अपनी आवाज का लोहा मनवाया है....जहां पश्चिम का लख्खी बिणजारा गीत उन्होने गाया तो हाड़ोती का देहाती ग्रामीण महिला का ‘जीरा’ गीत गाया वहीं मेवाती भरतपुर का कृष्ण भजन रंग मत डारे रे सांवरिया गाया तो शेखावाटी बीकानेर का पीपली गीत उनकी विरह वेदना मे झरती स्त्री मन के साथ साथ उस विरासत और धरोहर को संभाल भी रही है जो युगो युगो से राजस्थान की पहचान रही है....कुल मिलाकर मरु कोकिला सीमा मिश्रा ने छोटी सी चिरमी से चितौड़ गढ तक ,कैर से केसरिया बालम तक अपनी आवाज दी है...वहीं मीरा करमा से लेकर राजस्थान के सम्पूर्ण लोकदेवी- देवताओ, दो जाटी बालाजी,सालासर बालाजी, खाटू श्याम, झुंझुनू की दादी रानी, मेहंदीपुर बालाजी करणी, जीण,तेजा, पाबूजी, भैरव और रामदेव जी की स्तुति वंदना  जिनके कंठ में साक्षात मां सरस्वती विराजमान है ऐसी स्वर साधिका सीमा मिश्रा ने अपनी आवाज के माध्यम से की है....तुलसी दास के द्वारा रचित भारतीय जनजन के आराध्य श्री राम की स्तुति से लेकर राजस्थानी साहित्य के भीष्म पितामह कन्हैया लाल सेठिया द्वारा रचित प्रताप के गौरव और इस महान भूमि के गौरव गीत धरती धोरा री को सीमा मिश्रा ने अपनी ही आवाज से सहेजा है एवं राजस्थानी जनमानस के साथ साझा किया है, संरक्षित किया है।

गायिकी से जीवन के विभिन्न भावों को जीवंत कियास्त्री विरह को सबसे सशक्त आवाज सीमा मिश्रा ने ही दी है,और यह आवाज पहुँची हैं दूर दिसावर तक, वह हर स्त्री के विरह की सहभागीदार बनी है  भावना के गीतो का मूल स्वर प्रेम है किन्तु स्त्री विमर्श,विरह भी सीमा मिश्रा की मौशिकी पूरी तन्मयता से मार्मिक रचती है, गाती है। लोकगीतों में प्रतीक्षा, विरहिणी नायिका का ह्रदयग्राही चित्रण, स्मृतियों सपनो में डूबा बिरही मन सीमा मिश्रा की मधुर मीठी आवाज में जन जन के अन्तर्मन को तृप्त करता है। पलायन हमारे जीवन की तल्ख़ हकीकत हैं बेहतर अवसर और जिंदगी की तलाश में लोग घर छोडक़र कहीं ना कहीं जाते ही रहे हैं,स्त्री का इतिहास ही परदेशी पति की पीर पर आधारित है... इसलिए प्रवासन पर ‘लोक’ में बहुत सारे गीत सीमा मिश्रा ने गाकर जीवंत कर दिया ढोला मारू ,मूमल के प्रेम को राजस्थानी जन जीवन में... सीमा मिश्रा के विरह गीतों के स्वर कमाल करते है,इनके स्वर नारी मन की कोमल और बेहद मार्मिक संवेदनाओ का संसार रचते है.... सीमा मिश्रा के लोकगीत भाव रोपते है, दर्द समेटते है,संवेदनाएं रचते है.... सीमा मिश्रा की आवाज सहज सुरीली है तो वहीं विरह गीतो में सिंधु सा गाम्भीर्य रखती है, सुर इतने परिपक्व है कि हैरत में डाल देते है... इनके गीतों मे राजस्थान की बहुआयामी संस्कृति की झलक सुनने को मिलती है....

लोकगायिका मतलब आम स्त्री की आवाज, तो कह सकते है कि सीमा मिश्रा राजस्थानी नारी के अन्तर्मन की आवाज है तो साथ ही साथ नारी विमर्श का सशक्त हस्ताक्षर है। लोकगीतो को जीवन का स्वच्छ और साफ दर्पण कहा जाता है ,जिसमें समाज के व्याप्त जीवन का प्रतिबिंब दिखाई पड़ता है 



लोकसंगीत आदम अभिव्यक्ति है, पर नये सुर साज में सबसे सुंदर अगर किसी ने पिरोया है तो वो मरु कोकिला सीमा मिश्रा हैं...

सीमा मिश्रा की सम्मोहन करती आवाज राजस्थानी जनमानस एवं लोक के सांस्कृतिक विस्तार को सहज समेट लेने में सक्षम है... वहीं राजस्थान की लता सीमा मिश्रा की लाइव प्रस्तुतियाँ भी बरखा के बाद धरती पर उठती भीनी सुगंध की तरह मनभावन होती है।

सीमा मिश्रा की आवाज को राजस्थानी लोकजीवन की उदात भावनाओं का पाठ्यक्रम कहा जाए तो सर्वस्वीकृत होगा। क्योकिं वो अपनी आवाज के माध्यम से जच्चा- बच्चा, जन्म, मरण, परण, ग्रामीण कृषि, तीज त्योहार, गणगौर, के हर ग्राम्य सांस्कृतिक लोकरंग को समेटती है। राजस्थानी लोकजीवन के यथार्थ का ताना बाना बुनती मरु कोकिला सीमा मिश्रा की मौशिकी स्वर राजस्थानी पारिवारिक संबंधो को बड़े ही मनोवैज्ञानिक स्वरूप में अपने गीतों में समेटते है।

संक्षेप में कहे तो राजस्थानी जनमानस हर उत्सव में हलवाई की मिठाई की तरह सीमा मिश्रा के गीतो को जरूर शामिल करता है, सुनता है, थिरकता है।
भले ही राजस्थानी भाषा को भारत के संविधान की आठवी अनुसूची में शामिल नही किया गया है पर सीमा मिश्रा ने इस राजस्थानी भाषा के संरक्षण, संवर्धन में अपना अहम योगदान देती आ रही है...

आप पूरे देश- दुनिया में कहीं भी जाती है राजस्थानी (मारवाड़ी) अपनी मायड़ भाषा में ही बात करती है। तथा अपने कार्यक्रमों में और जहां भी उन्हें मौका मिलता है सार्वजनिक स्तर पर सभी को अपनी मायड़ भाषा में बातचीत करने के लिए प्रेरित करती हैं।वीणा म्यूजिक कैसेट कंपनी पर उनके गीतो को सुदूर दक्षिण भारत के कन्नड़, तमिल, तेलगु श्रोताओं के कमेंट है कि लोकगीत को समझ नही पा रहे है पर आवाज के कायल है, कहीं ना कहीं एक कलाकार के कला की ताकत है जो सामने वाले को सम्मोहन में बांधे रखती है।



लोकगीतों-लोकसंस्कृतियों को सहेजा जाना बहुत जरूरी है

स्वर कोकिला सीमा मिश्रा ने राजस्थान की आत्मा,नृत्यों का सिरमौर,घूमर गीत जब गाया तो यह गीत रजवाड़ो से निकलकर आम जन के रास्ते होते हुए विश्व के लोकनृत्यो में चौथे स्तर पर आ गया, यह सब सीमा मिश्रा के गायन का ही प्रभाव था। वहीं इस घूमर को प्रादेशिक संस्कृति से भारतीय संस्कृति तक पहुँचाने के कारण ही इनको राजस्थान में घूमर गर्ल तक कहा जाने लगा। वहीं इसी घूमर की प्रसिद्धि के कारण राजस्थान के पूर्व राज्यपाल अंशुमान सिह द्वारा प्लेटिनम डिस्क अवार्ड से सीमा मिश्रा को सम्मानित किया गया है। घूमर जैसे लोकगीतों  के माध्यम से मरू कोकिला सीमा मिश्रा ने आने वाली पीढिय़ों को अपनी सारी परपंराओं, परिपाटी सफलता पूर्वक सौंपी है। सीमा मिश्रा ने हजारों लोकगीत,  हिन्दी गीत देश की विभिन्न संगीत कंपनियों में गाये...वहीं देश के बड़े कलाकारो ने इनके साथ मंच साझा किया जिनमें सुरेश वाडकर, सुनिधि चौहान,विनोद राठौड़ हैं। लोकगीत तो प्रकृति के उद्गार हैं, लोकगीतो के विषय सामान्य मानव की सहज संवेदना से जुड़े हुए है। कहा जाता है कि सामाजिकता को जिंदा रखने के लिए लोकगीतो लोकसंस्कृतियों को सहेजा जाना बहुत जरूरी है। बस संक्षेप में कहे तो सीमा मिश्रा के स्वर राजस्थानी लोकसंस्कृति के साक्षात ज्ञानकोष हैं... सीमा मिश्रा के स्वरों मे राजस्थानी परंपरा, परिवार, प्रकृति और रिश्तों की संवेदना पर टिकी हमारी लोकसंस्कृति, लोकधारा का अजस्त्र प्रवाह है।

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